Press release

भारत में वाहनीय प्रदूषण को नियन्त्रण में लाना अनिवार्य

प्रेस विज्ञाप्ति, 7 नवम्बर 2013

जल्द से जल्द अतिनिम्न सल्फर ईंधनों और भारत प्रक्रम (बी.एस.) VI वाहनीय उत्सर्जन मानकों को लागू करने से वायु प्रदूषण प्रभावशाली तरीके से कम होगा, जिससे जनस्वास्थ्य को फायदा मिलेगा।

वाहनीय वायु प्रदूषण से हर साल करीब 40,000 लोगों की समयपूर्व मृत्यु होती हैं। उसपर काबू पाने के लिये तुरंत कार्रवाई की जरूरत है।

भारत में एक और दिवाली मनाई गई। देश के विभिन्न शहरों में कुहरा और वायु प्रदूषण केवल पटाकों के कारण नहीं बढ़ा, बल्कि सड़कों पर चल रहे वाहनों के कारण भी। हालांकि दिवाली खत्म हो गई और पटाके बुझ गये, लेकिन अगर राष्ट्र-स्तर पर वाहनीय उत्सर्जनों को रोकने के लिये ठोस कदम नहीं उठाये जायेंगे तो वायु प्रदूषण हर रोज़ बढ़ता ही जाएगा।

जब अगले महीने को इस समय दिल्ली में वाद-विवाद कर रही वाहन ईंधन नीति समिति (Auto Fuel Policy Committee) ईंधन की गुणवत्ता और वाहनीय उत्सर्जन के भविष्य मानकों का घटनाक्रम प्रदान करेगी, भारत एक दोराहे पर होगा। एक रास्ता वही होगा जिसपर भारत चलता आ रहा है, और जिससे भारत विश्व की सर्वश्रेष्ठ नीतियों के और भी पीछे पड़ेगा। ऐसे होने से देश की वायु प्रदूषण और कच्चे तेल की आयात की समस्याएं ज्यादा गहरी हो जाएंगी। इतना ही नहीं, बल्कि वायु प्रदूषण के कारण हज़ारों लोगों की समयपूर्व मृत्यु होने का खतरा भी होगा। दूसरे रास्ते से आने वाले सालों में भारतीय नीतियों और अंतरराष्ट्रीय आदर्शों का तालमेल होगा। वायु प्रदूषण कम होगा, जनस्वास्थ्य को फायदा मिलेगा, और देश स्वस्थ जनसंख्या की उत्पादकता का आर्थिक लाभ भी उठा सकेगा। अब यह प्रश्न उठता है कि भारत प्रगति के रास्ते को अपनाता है या नहीं।

आज प्रकाशित इंटरनेशनल काउंसिल ऑन क्लीन ट्रांस्पोर्टेशन (आई.सी.सी.टी.) की एक रिपोर्ट का मुख्य संदेश यही है। अतीत, वर्तमान, और संभावित भविष्य के वाहनीय प्रदूषण नियंत्रण नीतियों का सार्थक विश्लेषण करने वाली यह रिपोर्ट भारतीय नीतियों को अंतरराष्ट्रीय अनुभवों के संदर्भ में पेश करती है। रिपोर्ट में विभिन्न परिदृश्यों में आने वाले सालों में तकनीकी लागत और स्वास्थ्य एवं आर्थिक लाभों की तुलना भी की गई है।

अनूप बांदिवडेकर, आई.सी.सी.टी. के एक प्रोग्राम निदेशक और रिपोर्ट के एक लेखक ने कहा, “हमारे अध्ययन में सिर्फ यह नहीं पाया गया कि भारत में स्वच्छ ईंधनों और वाहनों के बारे में ठोस कदम लेनी की क्षमता है, बल्कि यह भी पाया गया कि ये कदम न लेने से देश को बहुत नुकसान होगा। लेकिन हमें पूरा विश्वास है कि वाहन ईंधन नीति समिति समझती है कि ऐसे घटनाक्रम की अत्यावश्यकता है जिससे भारत 2020 तक अंतरराष्ट्रीय मानकों के बराबर आ जाये।“

2003 में डॉ. आर. ए. माशेलकर की नेतृत्व में पिछली वाहन ईंधन नीति अपनायी गयी थी। तब से भारत में वाहनों की संख्या तीन-गुना बढ़ गयी है। आज 2013 में करीब 13 करोड़ वाहन देश की सड़कों पर चल रहे हैं। 2025 तक इस आंकड़े को 25 करोड़ पहुंचने का अनुमान है। 2003 में माशेलकर समिति के द्वारा लागू किये गये मानकों ने प्रति वाहन उत्सर्जनों को बहुत कम किया। उनके कारण भारत में वाहनों के कुल उत्सर्जन कम तेज़ी से बढ़े। लेकिन इन उपलब्धियों के फायदे अब नगण्य होते जा रहे हैं। आई.सी.सी.टी. के विश्लेषण ने पाया है कि वाहनीय पार्टिक्यूलेट मैटर (पी.एम.) उत्सर्जन 2003 से जरूर कम हुए हैं, जबकि आज भी इनके कारण हर साल लगभग 40,000 समयपूर्व मृत्यु केवल शहरों में होती हैं। और अगर नये मानक लागू नहीं किये जाएँ, तो पांच साल के अंदर वाहनीय पी.एम. के उत्सर्जन 2003 के स्तर पर लौट आएंगे। पी.एम. के अलावा नाइट्रोजन ऑक्साइड (नॉक्स) के उत्सर्जन भी बहुत खतरनाक हैं। इनसे अप्रत्यक्ष रूप से हृदय व फेफड़ों के रोग होते हैं, या फिर इन रोगों से ग्रस्त लोगों में बीमारी और गंभीर हो जाती है। जबकि पी.एम. के उत्सर्जन कुछ कम हुए हैं, नॉक्स के उत्सर्जन पिछले दशक में बढ़े हैं, और अब इनके बढ़ने का दर भी तीव्र होता जा रहा है। नई दिल्ली स्थित दि एनर्जी एंड रीसोर्सेज़ इंस्टिट्यूट (टेरी) के एक फैलो, सुमित शर्मा, ने कहा, “वायु प्रदूषण भारत में पांचवां सबसे जानलेवा खतरा बन चुका है। आई.सी.सी.टी. के इस अध्ययन में दिखाया गया है कि ऐसा होना जरूरी नहीं है, और कि वाहनीय प्रदूषण पर सख्त काबू पाने के फायदे उसमें लगी कीमत के मुकाबले कई गुना ज्यादा हैं।“

परिवहन क्षेत्र से प्रदूषण और उससे संबद्ध स्वास्थ्य प्रभावों के प्रचलन के कई कारक हैं। भारत में दो समानांतर मानकों का प्रचलन है: एक मानक बड़े शहरों के लिये और दूसरा, नर्म मानक बाकी देश के लिये। इन दो अलग-अलग मानकों से वायु प्रदूषण को कम करने के प्रयास कमज़ोर हुए हैं। इसके अलावा, मानकों के अनुपालन के लिये जरूरी निरीक्षण और अनुरक्षण कार्यक्रमों की कमी, उपयोगरत वाहनों के उत्सर्जन परीक्षण का अभाव, और वाहन पंजीकरण नियमों की अनावश्यकता से भी वाहनीय उत्सर्जन मानक दुर्बल हुए हैं। और यात्री वाहनों की श्रेणी में डीज़ल गाड़ियों का अपेक्षाकृत हिस्सा बढ़ रहा है। इन गाड़ियों के पी.एम. और नॉक्स उत्सर्जन पेट्रोल गाड़ियों के मुकाबले कई गुना ज्यादा हैं, जिससे वायु प्रदूषण की स्थिति और भी गंभीर हो रही है।

परंतु, आई.सी.सी.टी. के अध्ययन ने स्पष्ट रूप से दिखाया है कि वाहनीय प्रदूषण पर काबू पाने के लिये दो सबसे खास पहलु हैं:  ईंधन में सल्फर की मात्रा और वाहनीय उत्सर्जन के मानक। भारतीय ईंधन में उच्च मात्रा में सल्फर (पेट्रोल में 150 पी.पी.एम. और डीज़ल में 350 पी.पी.एम.) के कारण पी.एम. उत्सर्जन ज्यादा हैं। साथ ही वाहनों पर प्रगत उत्सर्जन नियंत्रण तकनीकों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता क्योंकि इनके इष्टतम प्रयोग के लिये अतिनिम्न सल्फर की जरूरत है। भारत में वर्तमान वाहनीय उत्सर्जन मानकों (खास शहरों में बी.एस. IV और बाकी देश में बी.एस. III) यूरोप के पुराने मानकों पर आधारित हैं। लेकिन इस समय यूरोपीय वाहनीय उत्सर्जन मानकों के तहत वहां के वाहनों के पी.एम. और नॉक्स के उत्सर्जन भारतीय वाहनों के मुकाबले कई गुना कम हैं। गौरव बंसल, आई.सी.सी.टी. अध्ययन के दूसरे लेखक ने कहा, “भारत में ईंधन में सल्फर की मात्रा की सीमा 10 पी.पी.एम. होनी चाहिये। साथ ही बी.एस. VI उत्सर्जन मानक इस दशक की अंत तक पूरे देश में लागू किये जाने चाहिये। हमारे इस अध्ययन का सबसे खास निष्कर्ष यही है। हमें भारत और यूरोप के वाहनों और ईंधनों के मानकों के बीच आज जो दरार है, उसे खत्म करना चाहिये।“

www.theicct.org/indias-vehicle-emissions-control-program से आई.सी.सी.टी. रिपोर्ट और उसका सारांश और तथ्य-सूची डाउनलोड करें।

जनवरी 2013 में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने डॉ. सौमित्र चौधरी की अध्यक्षता में एक जानकारों की समिति गठित की थी जिसका नाम है “वाहन ईंधन दृष्टि और नीति-2025 (Auto Fuel Vision and Policy-2025)“। इस समिति का कार्यभार है 2025 तक भारत में ईंधन की गुणवत्ता और वाहनीय उत्सर्जन मानकों का घटनाक्रम स्थापित करना। समिति वाहनीय प्रदूषण को रोकने या कम करने के लिये अन्य सिफारिशें भी दे सकती है, जैसेकि उपयोगरत वाहनों के लिये विनियम, तेल की रिफाइनरियों की उन्नति के लिये वित्तीय प्रावधान, और वैकल्पिक ईंधनों का प्रचार के तरीके। डॉ. चौधरी की अध्यक्षता में यह समिति 2002 की माशेलकर समिति की उत्तराधिकारी है। माशेलकर समिति ने 2010 तक वाहनीय प्रदूषण काबू में लाने का घटनाक्रम स्थापित किया था।

इंटरनेशनल काउंसिल ऑन क्लीन ट्रांस्पोर्टेशन (आई.सी.सी.टी.) एक स्वतंत्र अलाभकारी संगठन है जो विश्व के पर्यावरणीय विनियामकों को अद्वितीय, निष्पक्ष अनुसंधान और तकनीकी तथा वैज्ञानिक विश्लेषण प्रदान करता है। आई.सी.सी.टी. परिषद में उच्चस्तरीय प्रशासक, शैक्षणिक शोधकर्ताएँ, और स्वतंत्र पर्यावरणीय और परिवहन नीति के जानकार शामिल हैं, जो आपस में नियमित रूप से काम करके विश्व के लिये एक साझा स्वच्छ परिवहन नीति पेश करते हैं। आई.सी.सी.टी. 2005 में स्थापित हुआ, और संगठन के कार्यालय बर्लिन, ब्रसल्स, लंदन, यू.एस., और चीन में हैं। संगठन के ज्यादातर पैसे निजी फाउंडेशनों से आते हैं, जैसेकि यू.एस. में ह्यूलेट फाउंडेशन और यूरोप में स्टिफ्टुंग मर्काटर।

संपर्क
अनूप बांदिवडेकर, कार्यक्रम निदेशक एवं भारत समहू के अध्यक्ष
+1 415.202.5754 (कार्यालय), +1 202.316.4348 (मोबाइल)
anup@theicct.org

गौरव बंसल, शोधकर्ता
+1 202.534.8346 (कार्यालय), +1 832.304.4729 (मोबाइल)
gaurav@theicct.org